शिव तांडव स्तोत्र
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेवलंब्य लंबितां भुजंगतुंगमालिकाम्
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम्
जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी-
-विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम
धराधरेंद्रनंदिनीविलासबंधुबंधुर
स्फुरद्दिगंतसंततिप्रमोदमानमानसे
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगंबरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूळिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबंधुशेखरः
ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिंगभा-
-निपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम्
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसंपदेशिरोजटालमस्तु नः
करालफालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजयाधरीकृतप्रचंडपंचसायके
धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम
नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः
निलिंपनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः
कळानिधानबंधुरः श्रियं जगद्धुरंधरः
प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा-
-विलंबिकंठकंदलीरुचिप्रबद्धकंधरम्
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे
अगर्वसर्वमंगळाकळाकदंबमंजरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम्
स्मरांतकं पुरांतकं भवांतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमश्वस-
-द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालफालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगळ
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचंडतांडवः शिवः
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजोर्-
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः
तृष्णारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेंद्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे
कदा निलिंपनिर्झरीनिकुंजकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्
विमुक्तलोललोचनो ललाटफाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् सदा सुखी भवाम्यहम्
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम्
शिव तांडव स्तोत्रद उगम
सद्गुरु: रावण ऒब्ब तीव्रवाद शिव भक्तनागिद्द मत्तु अदर कुरिताद अनेक कथॆगळु प्रचलितदल्लिवॆ. ऒब्ब भक्तनु ऎंदू दॊड्डवनागबारदु, आदरॆ अवनॊब्ब दॊड्ड भक्तनागिद्दनु. ऒंदु सारि अवनु दक्षिणद तुत्ततुदियिंद कैलासक्कॆ नडॆदु बंदनु – आ समयदल्लि अवनु अष्टु दूरदिंद नडॆदु बंदनॆंदरॆ, नीवदन्नु ऊहिसिकॊळ्ळबहुदु! बंदवने शिवन प्रशंसॆगळन्नु हाडलु प्रारंभिसिदनु. अवन बळि ताळवन्नु हाकलु बळसुत्तिद्द ऒंदु मृदंग इत्तु मत्तु अवनु कैलासक्कॆ बरुत्तिद्दंतॆये, निंतल्लिये १००८ श्लोकगळिरुव शिव तांडव स्तोत्रवन्नु रचिसिदनु.
रावणन संगीतक्कॆ मनसोत शिव, परमानंददिंद अदन्नु आलिसुत्तलिद्द. इत्त रावण, हाडुत्त हाडुत्त निधानवागि कैलासद दक्षिण मुखदिंद अदन्नु एरलु प्रारंभिसिद. इन्नेनु अवनु पर्वतद तुदिगॆ तलुपबेकु ऎन्नुवष्टरल्लि, पार्वति अवनु एरिबरुत्तिरुवुदन्नु कंडळु. आदरॆ शिव मात्र, इन्नू अवन संगीतदल्ले मुळुगिहोगिद्द.
पर्वतद तुदियल्लि इब्बरिगॆ मात्र स्थळवित्तु! आद्दरिंद पार्वति शिवनन्नु अवन संगीत परवशतॆयिंद हॊरतरलु प्रयत्निसिदळु. “ई मनुष्य मेलक्कॆ हत्ति बरुत्तिद्दानॆ” ऎंदवळु हेळिदळु. आदरॆ शिव संगीत मत्तु कवितॆयल्लि तल्लीननागि होगिद्द. कॊनॆयल्लि हेगो, पार्वति अवनन्नु रावणन संगीतद मोडियिंद हॊरतरुवल्लि यशस्वियादळु, मत्तु रावण पर्वतद शिखरवन्नु तलुपिदाग, शिव तन्न पादवन्नु बळसि अवनन्नु कॆळक्कॆ तळ्ळिदनु. रावण कैलासद दक्षिण मुखदिंद जारुत्ता कॆळक्कॆ बिद्दनु. अवनु जारुत्तिरुवाग अवन हिंदॆ अवन मृदंगवू सह ऎळॆदुकॊंडु बरुत्तित्तु मत्तदु पर्वतद मेलिंद कॆळगिनवरॆगॆ कॊरकलन्नु ऒंदु कॊरकलन्नु सृष्टिसितु ऎंबुदागि हेळलागुत्तदॆ. नीवु कैलासद दक्षिण मुखवन्नु नोडिदरॆ, अदर मध्यदिंद बॆणॆयाकारद गुरुतॊंदु कॆळगिन तनक होगिरुवुदन्नु नीवु काणुत्तीरि.
कैलासद नाल्कु मुखगळ नडुवॆ व्यत्यासवन्नु गुरुतिसुवुदु अथवा भेद माडुवुदु सरियल्ल, आदरॆ दक्षिणद मुख नमगॆ प्रियवादुद्दागिदॆ एकॆंदरॆ अगस्त्य मुनिगळु दक्षिण मुखदल्लि विलीनगॊंडरु ऎंब कारणक्कागि. नावु दक्षिणद मुखवन्नु इष्टपडुवुदु नावु दक्षिण भारतदवरु ऎंब पूर्वाग्रहदिंदागिरबहुदु अष्टॆ मत्तु अदु पर्वतद अति सुंदरवाद मुख ऎंदु नानु भाविसुत्तेनॆ! अदु खंडितवागियू पर्वतद अत्यंत बिळिय मुखवागिदॆ एकॆंदरॆ अल्लि तुंब हिम बीळुत्तदॆ.
अनेक विधगळल्लि अदु पर्वतद अत्यंत तीक्ष्णवाद मुखवागिदॆ आदरॆ कॆलवे कॆलवु जन मात्र दक्षिण मुखद कडॆगॆ होगुत्तारॆ. अदर प्रवेश दुर्गमवागिद्दु, पर्वतद इतर मुखगळिगिंत हॆच्चु कष्टवाद मार्गवन्नु अदु ऒळगॊंडिदॆ हागू कॆलवु रीतिय जनरु मात्र अल्लिगॆ होगुत्तारॆ.